बजट की हलचल शुरू हो गई थी. गुनगुनी धूप में बेताल पेड़ पर कलाबाजी कर रहा था. विक्रम आज कुछ तेज कदमों से चलता हुआ आ रहा था. उसने कुछ पढ़ लिख लिया था
बेताल ने पूछा उलझा सवाल. कैसे करती है सरकार कमाई? पुराना प्रेत तपा हुआ बजटबाज है. दे दिया सरकार की कमाई के पाई-पाई का हिसाब.
इस बार विक्रम पेड़ तक नहीं आया. बेताल की पेट में खलबली मची थी. विक्रम का इंतजार करते-करते बेताल ने भरी एक उड़ान... और क्या देखा.
पिछली बहस के बाद विक्रम सोच कर आया था कि अब बहस में नहीं फंसेगा. लेकिन पेड़ की नीचे पहुंचते ही बेताल कूद कर विक्रम के कंधे पर लद गया.
विक्रम चाय सुड़क रहा था. आज बेताल की तरफ जाने का मन नहीं था उसका. उधर पेड़ पर टंगा प्रेत दूर से इशारे कर रहा था, विक्रम तुझे आना होगा.
बेताल पेड़ पर बैठा सुस्ता रहा था. विक्रम ने पिछली दफा मुश्किल सवालों में जो घेर दिया था. इस बार बेताल मन बनाए बैठा था कि विक्रम की चालबाजी में नहीं आए
आज विक्रम पहले से आकर पेड़ के नीचे बैठ गया था. बेताल नॉर्थ ब्लॉक के गलियारों में झांकने गया था. लौटते हुए उसने एक चक्कर संसद का भी लगाया
हम सूंघने निकले थे बजट और विजय चौक के पार्क में मिल गए विक्रम और बेताल. ये विक्रम नए जमाने के बहसबाज और बेताल पुराना घाघ. विक्रम सवाल दाग रहा था और बे